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Prelims bits

प्रासंगिकता:
जीएस 2 II अंतर्राष्ट्रीय संबंध II भारतीय विदेश नीति II IFP को चुनौती
विषय: नीरव मोदी PNB घोटाला मामला – नीरव मोदी को भारत प्रत्यर्पित किया जाएगा, यूके कोर्ट ने कहा
सुर्खियों में क्यों?
पंजाब नेशनल बैंक (PNB), जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य संचालित बैंक है, ने श्री मोदी पर उस घोटाले के लिए मुख्य संदिग्धों में से एक होने का आरोप लगाया है, जिसमें बैंक को 2bn डॉलर का नुकसान हुआ है।
हाल ही में क्या हुआ?
- मोदी के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई कर रही U K की अदालत ने मुंबई की आर्थर रोड जेल के हाल ही में शूट किए गए वीडियो की समीक्षा की, जहां यदि मोदी को प्रत्यर्पित किया गया, तो पलायक को रखा जायगा। नीरव मोदी भारत सरकार द्वारा लगाए गये धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना करेगा।
- बैरिस्टर हेलेन मैल्कम ने सोमवार को लंदन में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत को बताया कि वीडियो साबित करता है कि जेल की शर्तों ने मानवाधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन के तहत U K के अनुच्छेद 3 दायित्वों को भंग करने का कोई जोखिम नहीं उठाया है।
प्रत्यर्पण संबंधी जानकारी:
परिचय:
- प्रत्यर्पण से तात्पर्य एक राजनयिक और औपचारिक प्रक्रिया से है, जिसके तहत किसी देश के अधिकार क्षेत्र से बाहर किए गए अपराधों के लिए एक भगोड़े अपराधी की हिरासत की वापसी की मांग उस देश से की जाती है, जहां भगोड़ा शरण लेता है। भगोड़ा अपराधी अनुरोध करने वाले देश के कानूनों द्वारा दंडनीय है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रत्यर्पण प्रक्रियाएं दो कारकों के अधीन होती हैं, अर्थात्, पहली, बाध्यकारी प्रत्यर्पण समझौते के अस्तित्व के तहत और दूसरी, उस देश के समाजी कानून के तहत जिसके लिए प्रत्यर्पण का अनुरोध किया जा रहा है। बहरहाल, दो देशों के बीच बिना किसी समझौते या व्यवस्था के भी प्रत्यर्पण प्रक्रिया हो सकती है, यह एक-दूसरे के प्रति विश्वास के परिणामस्वरूप की जा सकती है।
भारतीय प्रत्यर्पण कानून:
- भारत में, भारत से विदेश में किसी भगोड़े का प्रत्यर्पण या विदेश से भारत में अपराधी का प्रत्यर्पण, प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 के प्रावधानों के अधीन है जो कानून के इस क्षेत्र के लिए मौजूदा विधायी आधार बनाता है।
- यह अधिनियम प्रत्यर्पण कानून के प्रथम सिद्धांतों को निर्धारित करता है। प्रत्यर्पण की बाध्यता, भारत द्वारा अन्य देशों के साथ दर्ज की गई संधियों / व्यवस्थाओं / सम्मेलनों से आती है।
- प्रत्यर्पण अधिनियम के खंड 3 के तहत, भारत सरकार द्वारा अधिसूचित देशों को अधिनियम के प्रावधानों को विस्तारित करते हुए एक अधिसूचना जारी की जा सकती है। इसलिए, प्रत्यर्पण के कानून की व्यापक समझ के लिए, विशिष्ट संधियों के साथ प्रत्यर्पण अधिनियम को पढ़ना आवश्यक हो जाता है।
प्रत्यर्पण संधि:
- प्रत्यर्पण अधिनियम के खंड 2 (d) के अनुसार प्रत्यर्पण संधि का मतलब है ‘भगोड़ा अपराधियों के प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विदेशी देश के साथ एक संधि, समझौता या एक व्यवस्था।
- एक प्रत्यर्पण संधि किसी प्रत्यर्पण के लिए आवश्यक पूर्व स्थितियों या शर्तों की भी बात करती है। इसमें उन अपराधों की सूची भी शामिल है जो प्रत्यर्पण योग्य हैं।
- आमतौर पर, प्रत्यर्पण संधियां एक मानक ढांचे का पालन करती हैं और उन शर्तों को निर्दिष्ट करती हैं जिनके तहत एक भगोड़ा प्रत्यर्पित किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता। पुरानी द्विपक्षीय संधियाँ, जैसे कि बेल्जियम (1901), चिली (1897), नीदरलैंड (1898) और स्विटज़रलैंड (1880) के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधियाँ “सूची प्रणाली” के माध्यम से प्रत्यर्पण अपराधों को निर्दिष्ट करती हैं और इनमें उन अपराधों की एक विस्तृत सूची शामिल होती है जिसके लिए भगोड़े को प्रत्यर्पित किया जा सकता है।
- नई संधियाँ “दोहरी आपराधिकता” दृष्टिकोण को अपनाती हैं, जिसके तहत एक भगोड़ा केवल तभी प्रत्यर्पित किया जायगा यदि उसके द्वारा किया गया अपराध दोनों देशों में अपराध है।
- दोहरी आपराधिक दृष्टिकोण, सूची प्रणाली की तुलना में अधिक सुविधाजनक है और यह सुनिश्चित करता है कि साइबर अपराध जैसे नए अपराधों को दोनों देशों में उचित मान्यता दी जायगी और इसमें संधि शर्तों पर फिर से बातचीत की आवश्यकता नहीं होगी।
- हालाँकि, “दोहरी आपराधिकता” का सिद्धांत भी इसकी अपनी चुनौतियों के साथ आता है। उदाहरण के लिए, भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों, जैसे दहेज उत्पीड़न, जैसे अपराधों के लिए संधि सिद्धांतों को स्थापित करना मुश्किल है।
प्रत्यर्पण अपराध:
- खंड 2 एक प्रत्यर्पण अपराध को निम्नलिखित रूप में परिभाषित करता है: –
- विदेशी देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि के तहत किया गया अपराध; (संधि देशों के संबंध में)
- एक अपराध जो भारत के कानून या किसी विदेशी देश के कानून के तहत कम-से-कम एक वर्ष के कारावास के साथ दंडनीय है। (गैर संधि राज्य)
- समग्र अपराध – भारत और विदेशी देश में पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से किया गया अपराध, जो भारत में प्रत्यर्पण अपराध का गठन करेगा।
- एक भगोड़े अपराधी को प्रत्यर्पित किया जा सकता है। खंड 2 (f) के अनुसार एक भगोड़ा अपराधी वह है जो:
- किसी विदेशी राज्य के अधिकार क्षेत्र में किए गए प्रत्यर्पण अपराध का आरोपी या दोषी है;
- यदि कोई व्यक्ति भारत में रहकर किसी विदेशी राज्य में अपराध में भागीदर बनता है, तो वह बी प्रत्यर्पित किए जाने के लिए पात्र है, जो एक ‘भगोड़े अपराधी’ की विस्तृत परिभाषा के तहत शामिल है। प्रत्यर्पण अधिनियम का खंड 2 (f) तब भी लागू होता है, जब:
- भारत में रहने वाला कोई व्यक्ति:
- षड्यंत्र रचता है, या
- अपराध करने का प्रयास करता है, या
- उकसाता है, या
- भाग लेता है – किसी विदेशी देश में प्रत्यर्पण अपराध के लिए एक साथी के रूप में।
- इसलिए, भारत में एक व्यक्ति, जो भारत की सीमा में रहते हुए अपराध करने की कोशिश करता है / साजिश रचता है / उकसाता है, वह एक ‘भगोड़े अपराधी’ की परिभाषा के अधीन आता है और उसका प्रत्यर्पण किया जा सकता है।
भारत में प्रत्यर्पण संबंधी चुनौतियां:
- पिछली प्रत्यर्पण संधियों, जो कि भारत की बेल्जियम (1901) और चिली (1897) के साथ थीं, के तहत एक विस्तृत सूची शामिल की गई थी, जिनके लिए अपराधियों को प्रत्यर्पित किया जा सकता था, लेकिन अब दोहरे आपराधिक दृष्टिकोण का पालन किया जाता है।
- इसमें आवश्यक है कि दोनों राष्ट्रों द्वारा अपराध को अनिवार्य रूप से स्वीकार किया जाय और अपराधीकृत बनाया जाय। हालांकि यह एक अधिक सुविधाजनक प्रक्रिया है जिसमें साइबर अपराध की तरह ही कई नए अपराध शामिल हो सकते हैं, फिर भी यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण भी है। सामाजिक-सांस्कृतिक अपराध जैसे दहेज उत्पीड़न जो हमारे देश में काफी प्रचलित है, किसी अन्य देश में इसे गंभीर अपराध नहीं माना जाता है या स्वीकार नहीं किया जाता है।
- एक और सिद्धांत जिसके अपने लाभ और नुकसान हैं, दोहरा खतरा है, जो एक ही अपराध के लिए दो बार सजा को बाधित करता है, लेकिन इसे हाल के दिनों में भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा गया है।
- कभी-कभी चुनौतियां संधि प्रतिबंधों से परे होती हैं विशेष रूप से उन मामलों में जहां मानवाधिकारों के उल्लंघन की चिंताएं उजागर होती हैं। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम ने अतीत में मानव अधिकारों की चिंताओं के कारण उन अनुरोधों को अस्वीकार किया है जहां अत्याचार, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार की संभावना रही है।
प्रत्यर्पण मामलों का उदाहरण:
- नीदरलैंड सरकार को नील्स होल्क (जिसे “किम डेवी” भी कहा जाता है) के लिए “पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप केस” में शामिल होने और भारत में हथियारों की तस्करी के आरोप में प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने में लगभग आठ साल लग गए।
- 2017 में, ब्रिटिश अदालतों ने कथित सट्टेबाज संजीव कुमार चावला के प्रत्यर्पण को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली की तिहाड़ जेल में गंभीर परिस्थितियों के चलते उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को और अधिक सुचारू कैसे बनाया जा सकता है?
- विदेशी देशों की दस्तावेजी आवश्यकताओं में अनुचित विलंब और विचरण द्वारा प्रत्यर्पण प्रक्रियाएं और अधिक जटिल हो जाती हैं।
- प्रत्यर्पण प्रक्रिया का पहला चरण राजनयिक चैनलों के माध्यम से विदेशी सरकार को औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध प्रसारित करना है। एक बार यदि राज्य या केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच पूरी कर ली जाती है, तो वे मामले के पूर्ण विवरण के साथ एक अनुरोध अग्रेषित करते हैं, जिसमें अनुवाद (जहां आवश्यक होता है) के साथ, गवाह के आरोपों का विवरण, गिरफ्तारी वारंट और अनुरोधित व्यक्ति की पहचान स्थापित करने वाले दस्तावेज़ों का विवरण दिया जाता है।
- इस स्तर पर उठने वाली अनियमितताएं, जैसे कि जांच में देरी, पुलिस अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार, अनुचित या मनगढ़ंत दस्तावेज, और शपथ पत्रों और प्रमाणपत्रों का गलत प्रारूप, विदेशी अदालतों के समक्ष न्यायिक समीक्षा के उपांतिम चरण में संबोधित किया जा सकता है।
- जांच में देरी, भी रेड कॉर्नर नोटिस (RCN) जैसे प्रत्यर्पण अनुरोधों को जमा करने या इंटरपोल तंत्र को लागू करने की प्रक्रिया को धीमा कर देती है। इंटरपोल तंत्र अपराधियों का पता लगाने और अस्थायी रूप से गिरफ्तार करने में सहायक होता है।
निष्कर्ष:
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया, अपराध के दमन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दिशा में एक बड़ा कदम है। राज्यों को अपराध के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता से उत्पन्न एक दायित्व के रूप में प्रत्यर्पण का व्यवहार करना चाहिए। अपराध और न्यायिक विकास के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ, प्रत्यर्पण कानून बहुत अधिक परिवर्तन के अधीन है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न:
प्रत्यर्पण का क्या अर्थ है? भारत में, प्रत्यर्पण का कानूनी आधार क्या है? चर्चा करें। (250 शब्द)